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आमूर॑ज प्र॒त्याव॑र्तये॒माः के॑तु॒मद्दु॑न्दु॒भिर्वा॑वदीति। समश्व॑पर्णा॒श्चर॑न्ति नो॒ नरो॒ऽस्माक॑मिन्द्र र॒थिनो॑ जयन्तु ॥३१॥

English Transliteration

āmūr aja pratyāvartayemāḥ ketumad dundubhir vāvadīti | sam aśvaparṇāś caranti no naro smākam indra rathino jayantu ||

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Pad Path

आ। अ॒मूः। अ॒ज॒। प्र॒ति॒ऽआव॑र्तय। इ॒माः। के॒तु॒ऽमत्। दु॒न्दु॒भिः। वा॒व॒दी॒ति॒। सम्। अश्व॑ऽपर्णाः। चर॑न्ति। नः॒। नरः॑। अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। र॒थिनः॑। ज॒य॒न्तु॒ ॥३१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:31 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:35» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:31


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा आदि जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं के विदीर्ण करनेवाले राजन् ! आप जैसे (दुन्दुभिः) नगाड़ा (केतुमत्) प्रशंसा योग्य बुद्धियुक्त (वावदीति) निरन्तर बजाता, वैसे (इमाः) यह (अश्वपर्णाः) महान् पक्षोंवाली अपनी सेनाएँ (प्रत्यावर्त्तय) लौटाइये और उनसे (अमूः) यह शत्रुसेनाएँ दूर (आ, अज) फेंकिये जो (अस्माकम्) हमारे (रथिनः) प्रशंसित रथवाले (नरः) नायक वीर हमारे शत्रुओं को (जयन्तु) जीतें और जो विजय के लिये (सम्, चरन्ति) सम्यक् विचरते हैं, वे (नः) हम लोगों को सुशोभित करें ॥३१॥
Connotation: - हे राजा आदि जनो ! तुम लोग दुन्दुभि आदि वाजनों से भूषित, हर्ष वा पुष्टि से युक्त सेनाओं को अच्छे प्रकार रख कर इनसे दूरस्थ भी शत्रुओं को अच्छे प्रकार जीतकर प्रजाओं को धर्मयुक्त व्यवहार से पालन करो ॥३१॥ इस सूक्त में सोम, प्रश्नोत्तर, बिजुली, राजा, प्रजा, सेना और वाजनों से भूषित कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ इस अध्याय में इन्द्र, सोम, ईश्वर, राजा, प्रजा, मेघ, सूर्य, वीर, सेना, यान, यज्ञ, मित्र, ऐश्वर्य्य, प्रज्ञा, बिजुली, बुद्धिमान्, वाणी, सत्य, बल, पराक्रम, राजनीति, सङ्ग्राम और शत्रुविजय आदि गुणों का वर्णन होने से इस अध्याय की पूर्वाध्याय के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीमद् विरजानन्द सरस्वती स्वामी के शिष्य श्रीमद्दयानन्दसरस्वती स्वामिविरचित, सुप्रमाणयुक्त, आर्यभाषाविभूषित, ऋग्वेदभाष्य के चौथे अष्टक में सप्तम अध्याय पैंतीसवाँ वर्ग और छठे मण्डल में सैंतालीसवाँ सूक्त भी समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादयो जनाः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र राजँस्त्वं यथा दुन्दुभिः केतुमद्वावदीति तथेमा अश्वपर्णाः स्वसेनाः प्रत्यावर्त्तय ताभिरमूः शत्रुसेना दूर आज। येऽस्माकं रथिनो नरोऽस्माकं शत्रूञ्जयन्तु। ये विजयाय संचरन्ति ते नोऽस्मानलंकुर्वन्तु ॥३१॥

Word-Meaning: - (आ) (अमूः) इमाः शत्रुसेनाः (अज) समन्ताद्दूरे प्रक्षिप (प्रत्यावर्त्तय) (इमाः) स्वकीयाः (केतुमत्) प्रशस्तप्रज्ञायुक्तम् (दुन्दुभिः) (वावदीति) भृशं वदति (सम्) (अश्वपर्णाः) महान्तः पर्णाः पक्षा येषान्ते (चरन्ति) (नः) अस्मान् (नरः) नायकाः (अस्माकम्) (इन्द्र) शत्रुविदारक (रथिनः) प्रशस्ता रथा विद्यन्ते येषां ते (जयन्तु) ॥३१॥
Connotation: - हे राजादयो जना यूयं दुन्दुभ्यादिवादित्रभूषिता हृष्टाः पुष्टाः सेनाः संरक्ष्याभिर्दूरस्थानपि शत्रून् विजित्य प्रजा धर्म्येण पालयतेति ॥३१॥ अत्र सोमप्रश्नोत्तरविद्युद्राजप्रजासेनावादित्रकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ अस्मिन्नध्याय इन्द्रसोमेश्वरराजप्रजामेघसूर्य्यवीरसेनायानयज्ञमित्रैश्वर्य्यप्रज्ञाविद्युन्मेधावीवाक्सत्यबलपराक्रमराजनीति-सङ्ग्रामशत्रुजयादिगुणवर्णनादेतदध्यायस्य पूर्वाध्यायेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य्यश्रीमद्विरजानन्दसरस्वतीस्वामिशिष्यश्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिविरचिते सुप्रमाणयुक्त आर्य्यभाषाविभूषित ऋग्वेदभाष्ये चतुर्थाष्टके सप्तमोऽध्यायः, पञ्चविंशो वर्गः, षष्ठे मण्डले सप्तचत्वारिंशत्तमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा इत्यादींनो ! तुम्ही दुन्दुभि इत्यादी वाद्यांनी भूषित असलेल्या व हर्षित असलेल्या पुष्ट सेनेद्वारे दूर असलेल्या शत्रूंनाही जिंकून प्रजेचे धर्मयुक्त व्यवहाराने पालन करा. ॥ ३१ ॥